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ज़िन्दगी जीने का नया अध्याय, पर थोड़ी बोर करती, डिअर ज़िन्दगी (स्टार २. 5 )

            गौरी शिंदे  ने फिल्म  'इंग्लिश विंग्लिश' से अपनी प्रतिभा दिखा दी थी, श्री देवी की कम बैक फिल्म थी, और विषय था एक माँ को इंग्लिश नहीं आना, खेर गौरी इस बार ले कर आ रही है डिअर ज़िन्दगी इस बार उनका विषय हैं, एक परफेक्ट ज़िन्दगी, इस बार गौरी ने शाहरुख़ खान, आलिया भट्ट की जोड़ी को लिया है, आइए करते है इस फिल्म की समीक्षा 
 
फिल्म का नाम : डियर जिंदगी 
निर्देशिका : गौरी शिंदे
 कास्ट : आलिया भट्ट, कुणाल कपूर, अंगद बेदी, शाहरुख खान, अली जफर 
स्टार  : २. 5
 
      बात करते हैं कहानी की तो कायरा  ( आलिया भट्ट ) एक सिनेमेटोग्राफर है, जिसका सपना है एक बड़ी फिल्म करना, ज़िन्दगी गुजारने के लिए छोटी मोटी विज्ञापन करती है, साथ ही कायरा की दोस्ती प्रोड्यूसर रघुवेन्द्र (कुणाल कपूर) से होती है, प्यार होता है, परवान नहीं चढ़ता, कायरा की ज़िन्दगी में सीड अंगद बेदी) और रूमी (अली जफर) से भी मिलती है, लेकिन कायरा को लगता हैं की यह सब भी उसकी ज़िन्दगी के लिए परफेक्ट नहीं हैं, आखिरकार एक वक़्त बाद कायरा गोवा अपने माता पिता के घर आकर रहने लगी और एक दिन उसकी मुलाकात होती है डॉक्टर जहांगीर खान उर्फ जग (शाहरुख खान) से, जग दिमांग के डॉक्टर हैं, यानी सयकाट्रिक्स, खेर जग कायरा को ज़िन्दगी जीने का एक नया अध्याय सीखना शुरू करते हैं और हर बार कायर को एक नई सोच और ज़िन्दगी जीने का नया नजरिया सिखाते हैं. अब आगे क्या होता है, क्या कायरा की ज़िन्दगी में बदलाव आते है। 
      अब बात करते है अभिनय की तो आलिया भट्ट ने अपने अभिनय का जलवा दिखाया है, आप उनसे कनेक्ट करते नज़र आएंगे, शाहरुख़ खान को यु ही बादशाह नहीं कहते, वह एक डॉक्टर और उनके गाइड की भूमिका को बखूबी निभाते हैं. साथ ही कुणाल कपूर, अंगद और अली ने भी अपने अभिनय के साथ इंसाफ किया है, छोटा रोल होने के बावजूद भी । 
निर्देशिका गौरी शिंदे की बात करे तो कमाल का है, साथ ही लोकेशन भी बेहद खूबसूरत लिए गए हैं, यहाँ सिनेमेटोग्राफी की तारीफ करनी होंगी वाकय बेहतरीन शूट किया है । 
 बात करे संगीत की तो अमित त्रिवेदी का है, जो गौरी के साथ पहली फिल्म में भी साथ दिया था और इस बार भी उम्दा संगीत दिया है, जो कही से भी कहानी को डिस्टर्ब नहीं करता उल्टा कहानी के साथ ही चलता नज़र आता है । 
बात करते है कमजोर कड़ी की तो फिल्म की लंबाई जो करीब ढाई घंटे की इसकी लेंथ थोड़ी छोटी कर दी जाती तो और अच्छी होती और इसकी एडिटिंग पर भी थोड़ा गौरी शिंदे ने ध्यान दिया होता, कई बार फिल्म बोर करने लगती हैं । 
 
पुष्कर ओझा